
दुनिया की अजीब रीत है,
हर ख़ुशी से जुडी एक अधूरी जीत है
जो ना चाहते हुए भी हमे याद दिलाती है
उस अधूरे सपने से फिर मिलवाती है
बचपन में छुपकर लिखा करती थी,
हर एक पल को अपनी यादो में संजो लेती थी
घर पे सबको लगा मैं बहुत sincere हूँ
पर किताबो के पन्नो में मेरी सच्चाई छिपी थी
एक छोटा सा पल जो मेरे दिल को छू जाता था
उसपे ना जाने कितनी कहानिया बनाई है
अपने दिल की बातें सब दोस्तों से कहते हैं
मैंने ये सब अपने कविताओं में सजाई है
वो पहला प्यार, वो दिल की बात,
चुपके से मिलना, और घंटो बात करना,
वो ना जाने कहा हैं,
लेकिंग उनकी यादें आज भी ज़िंदा हैं
जैसे बड़े हुए, दुनिया की भागदौड़ में खो गए ,
ना चाहते हुए भी हम जो ना बनना चाहते थे उनके जैसे हो गए
समाज को आज भी मेरी काबिलियत पे नाज़ है
पर मेरे अंदर छुपे कई राज़ है
सोचती हूँ ये समाज की बेड़िया तोड़ दू,
कुछ पल निकाल खुद के लिए जी लू
भूल जाऊ आस पास के सब लोगो को,
अपनी सचाई को मैं खुद कबूल लू
ऑफिस से घर की दौड़ में
ट्रैफिक के कांस्टेंट हॉर्न में ,
मेरे सारे सपने रह गए
एक लेखक बनने का सपना जो था अब मेरे कलम तक रह गया
चलो आज नयी शुरुवात करते है
एक बार फिर उड़ने का प्रयास करते है
गिरेंगे, संभलेंगे तभी तो ज़िन्दगी का मज़ा आएगा
बस सोच कर तो ये सब एक सपना रह जाएगा